मरघट की ओर | Marghat ki Or
मरघट की ओर
( व्यंग्य रचना )
बज उठा,
चुनावी बिगुल!
निकल पड़े हैं मदारी,
खेल दिखाने!
बहलाने, फुसलाने,
रिझाने, बहकाने!
उज्जवल ——
अपना भाग्य बनाने!
जनता का दु:ख -दर्द,
जानकर भी,
बनते हैं जो अनजाने!
आओ दु:खियारों,
चलो -चलें,
मरघट की ओर,
इन मक्कारों की,
मिलकर चिता जलाने!
जमील अंसारी
हिन्दी, मराठी, उर्दू कवि
हास्य व्यंग्य शिल्पी
कामठी, नागपुर
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