निगाहें मिलाकर | Ghazal Nigahen Mila Kar
निगाहें मिलाकर
( Nigahen Mila Kar )
देखों ना सनम तुम यूँ नज़रे घुमाकर
करों ना सितम यूँ निगाहें मिलाकर !
करोगी कत्ल तुम कई आशिको का,
ये जलवें हसीं यार उनको दिखाकर !
घटाओं सी जुल्फ़े बनाती है कैदी,
करोगी हमें क्या कैदी तुम बनाकर !
ज़रा सा ये दिल है इसे बख़्श दो तुम,
अजी क्या मिलेगा कलेजा जलाकर !
अदाओं ने तेरी बहुत है सताया
ख़ुशी ना मिलेगी ‘धरम’ को सताकर !!