पिंजरे का पंछी | Gazal Pinjre ka Panchhi
पिंजरे का पंछी
( Pinjre ka panchhi )
हुस्न के ज़ेवर यूँ मत खोल
कर दे मेरी दुनिया गोल
पहले बाल-ओ- पर को तोल
फिर पिंजरे का पंछी खोल
फिर देगी गुफ़्तार मज़ा
कुछ तो इस में शीरीं घोल
मौसम करता सरगोशी
क्या है इरादा कुछ तो बोल
फिर होगी मदहोश ग़ज़ल
जाम उठा औ॓र् बोतल खोल
देख ज़रा तू ताजमहल
पीट रहा है किसका ढोल
छोड़ तराज़ू बाँट का फेर
वक़्त के हाथों सब कुछ तोल
यह बाज़ार -ए- हुस्न सही
प्यार नहीं पर बिकता मोल
एक ज़रा सी गर्दिश ने
खोली हर रिश्ते की पोल
सागर सबकी बात न कर
तुझसे रिश्ता है अनमोल