निवातिया के दोहे | Nivatiya ke Dohe

राखी का त्यौहार

चरणों अपने राखिये, मूरख हमको जान ।
प्रथम राखी आपको, परम पिता भगवान ।।

रेशम की डोरी लिए, कुमकुम रोली साथ ।
रक्षा वचन में बांधती, बहना राखी हाथ ।।

राखी सबको बांधिये, गैर सखा हो कोय ।
जनक, तनय या तात सम, रिश्ता जोई होय ।।

राखी के त्यौहार में, रखना समता भाव ।
बीज प्रीत के रोपिये, पनपे शीतल छाँव ।।

भाई तरसे बहन को, बहन भ्रात को रोय ।
कहने को सब आपने, जगत सगा ना कोय ।।

रिश्ते नातों से सगे, मन में रखते बैर ।
बाते चिकनी चूपड़ी, करम करे ज्यों गैर।।

राखी बंधन प्रीत का, सुनो धरम के बोल ।,
धागा उसको बांधिये, जान सके जो मोल ।।

बड़बोलो

बड़बोलो ये सीख लो, सोच समझ के बोल !
जनता अपनी जब करे, पल में खोले पोल !!

समय एक सा कब रहा, बदले सबका काल !
माणिक भी पत्थर भये, वक्त चले जब चाल !!

दम्भ किसी का ना रहा, लगे सब पर विराम !
नभ से भू पर यूँ गिरे, जैसे टपके आम !!

नभ से भू पल में गिरे, करता जो अतिरेक !
किस्मत उसका साथ दे, कर्म करे जो नेक !!

आज मेरी बारी पड़े, कल तुझ पे हो वार !
अपनों का जो ना सगा, होगा किसका यार !!

डी के निवातिया

डी के निवातिया

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