कलियुग का दोहा
( Kalyug ka Doha )
फूल रोपिए
शूल पाईए
झूठ बोलिए
सुख रहिए
जान लीजिए
माल पाइए
भला कीजिए
बुरा झेलिये
पानी मिलायिये
रबड़ी खाइये
फ़रेब कीजिए
कुबेर अरजिए
आंचल फैलायिये
अस्मिता गंवायिये
ठगते रहिए
दनदनाते रहिए
महल ठोकिए
रहम भूलिए
दूसरो खाइये
आपन बिसारिये
देह दिखाईए
द्रव्य दर्शाईये
शेखर कुमार श्रीवास्तव
दरभंगा( बिहार)