सुकूँ | Ghazal Sukoon
सुकूँ
( Sukoon )
कभी सच्चा ये मंज़र हो नहीं सकता
ग़लत पथ पर कलंदर हो नहीं सकता
अमर है इस जहां में प्यार सदियों से
फ़ना ये ढाई आखर हो नहीं सकता
दुआ माँ बाप की जिसने नहीं ली है
सुकूँ उसको मयस्सर हो नहीं सकता
मेरी इनकम ये मुझसे कहती है हर दिन
तेरे घर में पलस्तर हो नहीं सकता
करें मौसम ही ख़ुद जिसकी निगहबानी
कभी वो खेत बंजर हो नहीं सकता
जहां इज़्ज़त नहीं होती बुज़ुर्गों की
कभी आबाद वो घर हो नहीं सकता
न इससे बेवफ़ा होने को तुम बोलो
‘अहद’ से ये सरासर हो नहीं सकता !
शायर: :– अमित ‘अहद’
गाँव+पोस्ट-मुजफ़्फ़राबाद
जिला-सहारनपुर ( उत्तर प्रदेश )
पिन कोड़-247129