मुस्कुराना छोड़ दूं

( Muskurana chhod doon ) 

 

वो ख़फ़ा गर हैं तो क्या मैं मुस्कुराना छोड़ दूं।
खौफ़ से उनके मैं क्या नग़मे सुनाना छोड़ दूं।

ठीक है सरकार की नज़रे इनायत चाहिए
क्या मगर इसके लिए सारा जमाना छोड़ दूं।

लाख कोशिश की मगर फिर भी नहीं खुश है कोई
क्या करूं क्या मैं सभी रिश्ते निभाना छोड़ दूं।

जब भी परखा दोस्तों को मुझको मायूसी मिली
सोचती हूं दोस्तों को आजमाना छोड़ दूं।

आजकल मेरी दुआ जाने हुई क्यों बेअसर
तेरे दर पे ऐ ख़ुदा क्या सर झुकाना छोड़ दूं।

जानती हूं ख़्वाब सब पूरे हुआ करते नहीं
अब भला इसके लिए सपने सजाना छोड़ दूं।

इश्क़ की राहें कठिन दुश्वारियां गर हैं नयन
इससे डर महबूब की गलियों में जाना छोड़ दूं।

 

सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया  ( उत्तर प्रदेश )

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