आज़म नैय्यर की ग़ज़लें | Aazam Nayyar Poetry
फूल बनके मुझपे बिखरती है
फूल बनके मुझपे बिखरती है
रात भर यूं सांसें महकती है
शरबती है बहुत निगाहें जो
देखकर सांसें ही मचलती है
देखती है निगाह भरके ही
वो नहीं मुझसे बात करती है
डर रहा दिल मगर बहुत मेरा
रात भर आंख अब फड़कती है
हाँ ख़ुशी के लिए यहाँ हर पल
जिंदगी रोज़ ही तड़फती है
वो नज़र पर कहीं नहीं आता
देखने को आँखें तरसती है
किस तरह से यकीं करूं आज़म
बात वो रोज़ अब बदलती है
मैं तो बस रस्ता भटका हूँ
मैं तो बस रस्ता भटका हूँ
जीवन में इतना तन्हा हूँ
छोड़ गया साथ वहीं जब से
अब तो बस तन्हा रोता हूँ
शायद मैं भूल उसे जाऊं
आज बहुत उसको सोचा हूँ
आंखों से छलके है आंसू
याद उसे इतना करता हूँ
ज़ख्म मिले है इतने मुझको
रोज़ सकूं को मैं तड़पा हूँ
पूरी कर दे रब आज़म की
आस लिय जो मैं बैठा हूँ
चैन दिल को नहीं मिला नय्यर
चैन दिल को नहीं मिला नय्यर
की ख़ुदा से बहुत दुआ नय्यर
बावफ़ा ही मिला नहीं कोई
दोस्ती में करी वफ़ा नय्यर
ढूंढ़ती है नज़र उसे हर पल
हो गया वो कहीं जुदा नय्यर
गांव में कोई भी नहीं अपना
फ़िर करूं किससे मैं गिला नय्यर
हाल वो पूछता नहीं आकर
याद उसको करता रहा नय्यर
आशना दिल नहीं किसी का है
हर घड़ी तन्हा जी रहा नय्यर
लग गयी है नज़र बुरी कोई
प्यार का गुल नहीं खिला नय्यर
यादों में हर पल
यादों में हर पल दिल डूबा है
याद बहुत आता वो चेहरा है
और कहीं चलते है आओ अब
दिल और नहीं यहाँ अब लगता है
वो आया मिलने को न कभी भी
रोज़ उसी का देखा रस्ता है
उल्फ़त से पेश नहीं आया वो
नफ़रत का बस खंज़र मारा है
तोड़ गया वो रिश्ता मुझसे यूं
पास नहीं जो मेरे पैसा है
जैसे करता हो मुझसे नफ़रत
आज उसी ने ऐसे देखा है
बात करूं उससे चाहत की मैं
न कहीं वो अब आज़म मिलता है
मिली खाने को ही अजवा नहीं है
मिली खाने को ही अजवा नहीं है
हुआ अफतार के रोज़ा नहीं है
लगे है लोग लाइन में बहुत से
यहाँ राशन मगर मिलता नहीं है
यहाँ होने लगी बारिश बहुत अब
कभी तक खेत भी जोता नहीं है
कटे फुटफाथ पे रातें ही भूखे
मिला मासूम को खाना नहीं है
लगी सुर्खी लबों पे लाल सी तो
मगर इतना हँसी चेहरा नहीं है
यहाँ तो आ गये मेहमान घर में
कि घर में आज तो आटा नहीं है
दवा आज़म खरीदूँ किस तरह से
यहाँ इतना मगर पैसा नहीं है
ए यार मिल गये मक्कार शहर में
ए यार मिल गये मक्कार शहर में
दिल खूब हो गया आजार शहर में
है गांव की बहारें अच्छी देखले
तू छोड़कर नहीं जा यार शहर में
हंसकर मिले भला अब कौन है यहाँ
की लोग मिलते है बेज़ार शहर में
हाँ पेश प्यार से आता नहीं कोई
के हो रहा बहुत तकरार शहर में
यूं गांव छोड़कर जाते नहीं मगर
मिलता नहीं किसी में प्यार शहर में
जो बात प्यार की समझें नहीं आज़म
कुछ लोग मिल गये है ख़ार शहर में
नहीं होती
ग़म भरी कभी मेरी जिंदगी नहीं होती
हर ख़ुशी जुदा मुझसे कभी नहीं होती
दिल भरा नहीं रहता हर घड़ी उदासी से
बेवफ़ा उसी की जो आशिक़ी नहीं होती
ज़ीस्त में नहीं होता आज कल अकेलापन
ग़ैर गर वहीं मुझसे दोस्ती नहीं होती
वो निकाह से ही इंकार जो नहीं करता
फ़िर निगाह अश्कों से भरी नहीं होती
आज ईद मिलकर ही प्यार से मनाते हम
साथ गर उसी के जो दुश्मनी नहीं होती
सिलसिले जुदाई के फ़िर नहीं कभी होते
तल्ख़ गुफ्तगू उसने जो करी नहीं होती
आरजू नहीं होती हर घड़ी मुझे उसकी
गर मुझे वहीं आज़म जो मिली नहीं होती
क्या लिखूं मैं शाइरी में
क्या लिखूं मैं शाइरी में
दर्द आंसू ज़िंदगी में
वो नज़र आया नहीं है
खूब ढूँढ़ा हर गली में
भूल जा तू याद उसकी
रख नहीं आँखें नमी में
इस कदर बेरोज़गारी
ज़ीस्त गुज़रे मुफलिसी में
हाथ उससे तू मिला मत
है दग़ा उस दोस्ती में
दोस्त आज़म का ज़रा बन
कुछ न रक्खा दुश्मनी में
कट रहा है गम भरा जीवन बहुत
मुंतज़िर रहता खुशी को मन बहुत
कट रहा है गम भरा जीवन बहुत
प्यार की खुशबू से मैं वीरान हूँ
है कहीं उल्फ़त भरा गुलशन बहुत
एक मैं हूँ प्यार से भीगा नहीं
प्यार का बरसा कहीं सावन बहुत
जिंदगी में भेज दे कोई हसीं
जिंदगी में रब अकेलापन बहुत
फ़ूल जब से प्यार का उसको दिया
बन गये है जान के दुश्मन बहुत
जुल्म अपनों के सहे इतने मगर
दुख भरा मेरा कटा बचपन बहुत
छोड़ जब आज़म दिया इस्कूल है
रोज़ घर में ही हुई अनबन बहुत
ग़म भरी कभी मेरी जिंदगी नहीं होती
ग़म भरी कभी मेरी जिंदगी नहीं होती
हर ख़ुशी जुदा मुझसे कभी नहीं होती
दिल भरा नहीं रहता हर घड़ी उदासी से
बेवफ़ा उसी की जो आशिक़ी नहीं होती
ज़ीस्त में नहीं होता आज कल अकेलापन
ग़ैर गर वहीं मुझसे दोस्ती नहीं होती
वो निकाह से ही इंकार जो नहीं करता
फ़िर निगाह अश्कों से भरी नहीं होती
आज ईद मिलकर ही प्यार से मनाते हम
साथ गर उसी के जो दुश्मनी नहीं होती
सिलसिले जुदाई के फ़िर नहीं कभी होते
तल्ख़ गुफ्तगू उसने जो करी नहीं होती
आरजू नहीं होती हर घड़ी मुझे उसकी
गर मुझे वहीं आज़म जो मिली नहीं होती
ज़ीस्त में क्यों ख़ुशी नहीं आती
ज़ीस्त में क्यों ख़ुशी नहीं आती
प्यारी सी दोस्ती नहीं आती
प्यार से पेश आता हूँ सबसे
यूं मुझे बेरुख़ी नहीं आती
हूँ तलबगार दोस्ती का मैं
करनी ही दुश्मनी नहीं आती
ज़ीस्त में नफ़रत के अंधेरे है
प्यार की रोशनी नहीं आती
जो कहा सच कहा सनम तुझसे
हाँ करनी मस्ख़री नहीं आती
मैं दुआ रोज़ रब से करता हूँ
क्यों गमों की कमी नहीं आती
कुछ तस्सली मिले यहाँ आज़म
उसकी ही आगही नहीं आती
उसे ही याद
बहुत दिल पे यहीं पहरा रहा है
उसे ही याद दिल करता रहा है
हक़ीक़त में नहीं मुझसे मिला जो
वहीं बस ख़्वाब में आता रहा है
मुहब्बत का नज़र आये न रस्ता
अदावत का धुआँ उठता रहा है
जिसे बेताब आँखें देखने को
उसी की शक्ल पे पर्दा रहा है
करी उम्मीद थी हर पल ख़ुशी की
यहाँ तो रोज़ ग़म मिलता रहा है
तम्मना बन गया दिल की वहीं अब
पराया जो यहाँ चेहरा रहा है
उसे दूँ फूल आज़म किस तरह अब
कि अब रिश्ता नहीं गहरा रहा है
गुल जिसकी ही सूरत है
गुल जिसकी ही सूरत है
उससे मुझको उल्फ़त है
चैन मिले देखकर उसको
वो दिल की ही राहत है
और नहीं कोई भाता
उसकी ही अब आदत है
वो आता न नज़र मुझको
यार लगी जिसकी लत है
लौटा अंगूठी वो गया कल
कि हुई जिससे निस्बत है
वो मिलता नहीं है आज़म
जिसकी दिल को रग़बत है
रोज़ जिसकी जुस्तजू है
रोज़ जिसकी जुस्तजू है
वो नहीं अब रू ब रू है
चाहता हूँ भूल जाऊं
याद आये रोज़ तू है
छोड़ दे नाराज़गी सब
प्यार की कर गुफ्तगू है
प्यार का भेजा उसे ख़त
चाँद सी जो हू ब हू है
तू ज़रा चलना संभल ले
हर तरफ़ देखो अदू है
हो सकी आज़म न पूरी
हाँ रही जो आरजू है
है ज़रूरत उस सदा की
एक सच्चा आशना की
है ज़रूरत उस सदा की
भूल जा दिल से उसे तू
आस मत रख बेवफ़ा की
कब निभायी है मुहब्बत
प्यार में उसने जफ़ा की
प्यार से जो देखता था
अब नज़र उसने ख़फ़ा की
टूटे दिल को चैन आये
रोज़ रब से ही दुआ की
वो गया आज़म दग़ा दे
खूब जिससे ही वफ़ा की
प्यार की गुफ्तगू नहीं करती
प्यार की गुफ्तगू नहीं करती
शक्ल वो रू- ब रू -नहीं करती
आज बदनाम हम नहीं होते
बात वो चार सू नहीं करती
दोस्त बनकर मगर सदा रहते
गर वहीं दिल अदू नहीं करती
हो गयी किसलिए ख़फ़ा मुझसे
क्यों सनम बात तू नहीं करती
अजनबी मान लेता मैं आज़म
बात वो गर शुरू नहीं करती
रोज़ जिसकी जुस्तजू है
रोज़ जिसकी जुस्तजू है
वो नहीं अब रू ब रू है
चाहता हूँ भूल जाऊं
याद आये रोज़ तू है
छोड़ दे नाराज़गी सब
प्यार की कर गुफ्तगू है
प्यार का भेजा उसे ख़त
चाँद सी जो हू ब हू है
तू ज़रा चलना संभल ले
हर तरफ़ देखो अदू है
हो सकी आज़म न पूरी
हाँ रही जो आरजू है
क्या लिखूं मैं शाइरी में
क्या लिखूं मैं शाइरी में
दर्द आंसू ज़िंदगी में
वो नज़र आया नहीं है
खूब ढूँढ़ा हर गली में
भूल जा तू याद उसकी
रख नहीं आँखें नमी में
इस कदर बेरोज़गारी
ज़ीस्त गुज़रे मुफलिसी में
हाथ उससे तू मिला मत
है दग़ा उस दोस्ती में
दोस्त आज़म का ज़रा बन
कुछ न रक्खा दुश्मनी में
दिल अपना तो
याद बहुत आता वो अक्सर है ?
आँखें आंसूओं से यूं तर है
जब से छोड़ गया है साथ वहीं
खाली लगता अब तो ये घर है
उल्फ़त के दिन खोये है ऐसे
नफ़रत का हर पल अब मंजर है
क्या लेना नफ़रत की बातों से
दिल अपना तो यारों शायर है
दोस्त जिसे दिल से सच्चा माना
मारा नफ़रत का ही खंज़र है
गुल लेगा क्या वो ही उल्फ़त का
उल्फ़त से दिल उसका बंजर है
किससे आज़म बात करूं दिल की
कोई न यहाँ तो अपना पर है
है प्यार ही वतन में
है प्यार ही वतन में
गुल खिल रहे चमन में
ऊंचा रहे तिरंगा
हर व़क्त इस गगन में
रखना ख़ुदा मुहब्बत
तू देश की फ़बन में
कोई न आंच आये
हो मुल्क बस अमन में
सुन के अदू डरे जो
जय हिंद हो हर झन में
दुश्मन वतन के मारूं
आज़म ये ही ज़हन में
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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