तारीफ़ तेरे हुस्न की | Tarif Tere Husn ki
तारीफ़ तेरे हुस्न की
( Tarif Tere Husn ki )
तारीफ़ तेरे हुस्न की हर शाम करेंगे
महबूब तेरे इश्क़ में हम नाम करेंगे
डरते न ज़माने से हुकूमत हो किसी की
इज़हार ए मुहब्बत भी सरे-आम करेंगे
जो मोम था पत्थर हुआ दिलदार भी लेकिन
खुद क़त्ल भी हों उसको न बदनाम करेंगे
ऊँचा हो भले दाम ख़रीदार हों लाखों
इज़्ज़त को मगर अपनी न नीलाम करेंगे
जाया न करें वक़्त यूँ बेकार में हम तो
तकलीफ़ हो कितनी भी न आराम करेंगे
डूबेगा जो उल्फ़त का समुंदर में सफ़ीना
हम बैठ के साहिल पे तो कुहराम करेंगे
रखते हैं तेरी याद को इस दिल में सजाकर
खाली न कभी अश्क के हम जाम करेंगे
सरनाम करेंगे सदा अपने भी हुनर को
बदनाम न ख़ुद को कभी हम राम करेंगे
मीना नहीं डरते कभी अंजाम से हम तो
दुश्मन की हरिक चाल को नाकाम करेंगे
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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