मेरे भीतर | Rajni ki Ghazal
मेरे भीतर
( Mere Bheetar )
चढ़ा अपने सनम के इश्क़ का पारा मेरे भीतर
ग़ज़ल कहने का मौज़ूं है बड़ा प्यारा मेरे भीतर
रवानी बन गई है प्रेम की धारा मेरे भीतर
है ए’लान-ए-बहाराँ-सा ये इकतारा मेरे भीतर
कहूँ कैसे मैं तुमसे दिल है बेचारा मेरे भीतर
न जाने कबसे है पागल ये बंजारा मेरे भीतर
तुम्हारे इश्क़ से महका है मन सारा मेरे भीतर
ये कस्तूरी हिरन-सा फिर रहा मारा मेरे भीतर
बनाया है सुनो रब ने तुम्हारे ही लिए मुझको
परिंदा बन के ये फिरता है आवारा मेरे भीतर
छलकने अब लगा है यार अपने प्यार का साग़र(जाम)
ये पहली ही नज़र में बाज़ियाँ हारा मेरे भीतर
क़मर(चाँद) को रश्क़ है कितना निग़ाहें चार होने पर
ग़ज़ब है ढा रहा रजनी का लश्कारा मेरे भीतर
रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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