तलवार दी गई | Talwar di Gayi
तलवार दी गई
( Talwar di Gayi )
ख़ुद पर ही वार करने को तलवार दी गई
थाली में यूँ सजा के हमें हार दी गई
गर्दन हमारी यूँ तो सर-ए-दार दी गई
फिर भोंकने को जिस्म में तलवार दी गई
कहने को हम खड़े थे अज़ीज़ों के दर्मियां
मंज़िल हमीं को और भी दुश्वार दी गई
हमने बड़े हुनर से सजाया था गुलसितां
तोहमत हमारे सर पे ही सरकार दी गई
महफ़िल में सब की आँख से आँसू निकल पड़ें
गीतों में इस शऊर से झंकार दी गई
हम भाइयों के दर्मियां दूरी बनी रहे
ऐसी हमारे बीच में दीवार दी गई
जिनके सितम की लिख्खी थी हर सू ही दास्तां
उनके ही सर पे दोस्तो दस्तार दी गई
तशनालबी का राज़ न खुल जाये इसलिए
हमको बड़े गिलास में हर बार दी गई
साग़र तमाम उम्र मिले पेचोख़म हमें
कोई भी राह हमको न हमवार दी गई
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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