Soch mein Dooba Dil hai

सोच में डूबा दिल है

( Soch mein dooba dil hai )

 

सर पर रोज़ खड़ी मुश्किल है
हर पल सोच में डूबा दिल है

ज़ख्म मिले ऐसे अपनों से
दिल रहता हर पल बेदिल है

कांटों ने घेरा है ऐसा
फूल न उल्फ़त का हासिल है

पहरा है इतना दुख का ही
हाँ आँखें होती बोझिल है

जिसको समझा अपना साथी
वो ही उल्फ़त का क़ातिल है

नफ़रत ने रोका है रस्ता
न मिली उल्फ़त की मंज़िल है

ग़ैर हुआ वो आज़म मुझसे
यादों में ही जो शामिल है

 

शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )

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