तुम साधना हो

तुम साधना हो

तुम साधना हो

तुम ईश्वर की अनुपम संचेतना हो
रचित ह्दय प्रेम की गूढ़ संवेदना हो
क्या कहा जाए अद्भुत सौन्दर्य वाली
तुम सृष्टि की साकार हुई साधना हो ।

घुँघराले केश, मृगनयनी, तेज मस्तक
अंग सब सुअंग लगें यौवन दे दस्तक।
ठुड्डी और कनपटी बीच चमके कपोल
कवि सहज अनुभूति की तुम पालना हो ।

तुझसे जुड़कर कान की बाली इतराए
अधर लाली लाल देख गुलाब शरमाए
स्वर्गलोक से आई तुम हो सुन्दर परी
धरा पर सौन्दर्य की प्रबल भावना हो ।

तुम्हारे मन से निकलता सुन्दर सुविचार ,
देश-परदेश तक पहुँचा आचार विचार ।
प्रेम जिसकी तुम होगी, वो होगा धन्य,
मनहर स्वप्न की आलौकिक कल्पना हो ।

प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई

यह भी पढ़ें :-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *