किसानों की सुन ले सरकार!
किसानों की सुन ले सरकार!

किसानों की सुन ले सरकार!

*******

आए हैं चलकर दिल्ली तेरे द्वार,
यूं न कर उनका तिरस्कार;
उन्हीं की बदौलत पाते हम आहार।
सर्द भरी रातों में सड़कों पर पड़े हैं,
तेरी अत्याचारी जल तोप से लड़ रहे हैं।
सड़कों के अवरोध हटा आगे बढ़ रहे हैं,
शायद कोई इतिहास नया गढ़ रहे हैं।
आखिर क्यों फिर रहे हो भागे?
वार्ता तो कर लो आगे आके!
आपने जो नीति बनाई है,
किसानों को तो नहीं भायी है।
आवाज़ उठा रहे हैं सड़कों पर-
नहीं कहीं सुनवाई है,
अत्याचारी सरकारों ने सदैव ही किसानों पर
लाठी गोली चलवाई है।
यह कैसी परंपरा चली आई है?
अन्नदाता किसानों पर ही बल दिखाता अतातायी है!
स्वेद बूंदों से जो सींचते धरती का सीना,
उन्हीं का मुश्किल हो गया है अब जीना!
सब उन्हीं पर जुल्म करते हैं,
और संगीत की धुन पर थिरकते हैं!
कैसे असंवेदनशील हो हम-सब देखते हैं?
उनके लिए कुछ तो नहीं करते हैं,
वर्चुअल ही सही मांग तो कर सकते हैं।
सोशल मीडिया पर उंगलियां ही थिरका सकते हैं,
पहल करने का दबाव तो बना सकते हैं?
बहुत हो चुका!
अब पहल करो सरकार…
निकल ही आएगा कुछ रास्ता,
तुझे तेरी सत्ता का वास्ता!
वार्ता को तो हो तैयार?
किसानों की लो सुध-
जरा उन पर करो विचार।
आर्थिक प्रगति की दुगनी हो जाए रफ्तार,
किसानों पर न करो अब अत्याचार।
एम एस पी से इतर न हो कोई व्यापार,
बिचौलियों की खाट खड़ी कर दो सरकार।
बस यही आश्वासन उन्हें चाहिए,
कदम दो कदम आगे बढ़ उन्हें मनाइए ।
वरना आगे चुनौती बड़ी होगी,
समस्याओं की लड़ी होगी।
मुश्किलों की घड़ी होगी,
जो सर्वथा राष्ट्र हित में नहीं होगी;
परिणाम हम सब को झेलनी होगी।
समय है अभी, सुन लो सरकार…
किसान आ खड़े हैं तेरे द्वार!

 

?

नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

यह भी पढ़ें : 

नौसेना दिवस ( 04 दिसंबर )

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here