तमन्न-ए-क़ल्ब | Tamanna-e-Qalb
तमन्न-ए-क़ल्ब
( Tamanna-e-Qalb )
हर तमन्न-ए-क़ल्ब मर जाए।
वो अगर अ़ह्द से मुकर जाए।
और भी आब-जू निखर जाए।
वो अगर झील में उतर जाए।
वो अगर देख ले नज़र भर कर।
सूरत-ए-आईना संवर जाए।
क्या करें जान ही नहीं जाती।
जान जाए तो दर्द-ए-सर जाए।
जेब ख़ाली है ह़ाल बोसीदा।
ऐसी ह़ालत में कौन घर जाए।
हाथ रख दे जो,वो मुह़ब्बत से।
दर्द कैसा भी हो ठहर जाए।
हाय क्या हो गया फ़राज़ इसको।
उसकी जानिब ही ये नज़र जाए।
मुझको इतना फ़राज़ बतला दे।
कैसे उन तक मिरी ख़बर जाए।
पीपलसानवी
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