जलाना एक दीपक
जलाना एक दीपक
( माधव मालती छंदाधारित गीत )
देहरी पर आज अंतस के जलाना एक दीपक
फेर कूची द्वेष पर तुम जगमगाना एक दीपक।
घर तुम्हारा रौशनी से झिलमिलाता ठीक है ये
पर्व खुशियों के मनाता गीत गाता ठीक है ये
द्वार अंधेरा पड़ोसी का अगर है व्यर्थ है सब
सामने कोई विकल तो हर्ष का कुछ अर्थ है कब
जा अभी उसके दुआरे तुम सजाना एक दीपक।
देहरी पर आज अंतस के जलाना एक दीपक।।
इस दिवाली चित्त की उद्विग्नता को दूर करना
स्वच्छ करके क्लेश के जाले मलिनता दूर करना
जो ॲंधेरा वासना का नित्य भटकाता तुम्हें है
जो बुराई का मलिन पथ नित्य बहकाता तुम्हें है
मार्ग वो करने को उजला तुम बनाना एक दीपक
देहरी पर आज अंतस के जलाना एक दीपक।
जो स्वजन बिछड़े कभी है याद में जिनके व्यथित मन
जो कुपित हैं स्नेह पाने को सदा जिनसे तृषित मन
पास होकर भी नहीं जो पास मन के रह गये हैं
और कुछ की याद में नैनों से ऑंसू बह गये हैं।
नाम का उनके बना जल में बहाना एक दीपक।
देहरी पर आज अंतस के जलाना एक दीपक।।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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