श्रीमती उमेश नाग की कविताएं

तुम क्या हो

तुम क्या हो, कौन हो तुम
जरा तो मुझे बतलाओ।
कोई हूर या फरिश्ता या
इंसानों में कोई देव‌ स्वरूप हो।
करूं तुम्हारी पूजा या इबादत
जरा तो मुझे बतलाओ।
रागों में तुम राग मल्हार हो-
पुष्पों में सुगंधित लाल गुलाब हो,
साजों‌ में तुम सारंगी सी सरीले हो।
बागों में जैसे सावन की बहार हो
जरा तो बताओ तुम क्या हो।
कागजों में तुम्हें शब्द बना उतारूं
तो तुम पूरी किताब हो।
जीवन में बेहिसाब जवानी –
हो तुम
इत्र में मेरे लिए तुम केवड़े
को खुशबू हो।
बताओं तुम क्या हो।
ख्वाबों में मेरे ईश्वर के भेजे हुए
दिलरूबा फरिश्ते हो।
तुम क्या हो जनाब!
तुम जो भी मेरे लिए खुदा से
कम नही हो।

भगवान होते हैं

जो बुद्धि, वाणी, इन्द्रियों से परे है,
अजन्मा, माया, मन और गुणों के पार है।
वहीं सच्चिदानंदघन ईश हमारा,
भगवान का अवतार है।
सृष्टि का नायक, ब्रम्हांड को चलाता है,
हमारे चक्षु व मस्तिष्क के परे- अज्ञात है।
वही तो भगवान होते हैं,
कहीं मुरली बजाता है व-
कहीं पर नृत्य करता है।
सोलह कलाओं को बादशाह,
सभी रूपों में सुशोभित वो ही-
हमारा भगवान होता है।
भगवान तो स्फटिक मणि समान है,
सभी जीवों की आत्मा में – वास करता है।
कहीं चींटी के रूप में तो कहीं, हाथी के रूप में;
प्रतिबिम्ब अपना देता है – वही भगवान होता है।
वह अलक्ष्य है उसकी ही,
कांति अप्रत्यक्ष हम हर जीव – में देखते हैं।
कण कण में है उस‌का वास,
ईश रूप अप्रत्यक्ष है उसमें।
क्यूं बिना ईंधन के पत्थर में – आग है,
वैसे ही भगवान का प्राग्यट सर्वत्र व्याप्त है।
यदि भगवान नही होते तो,
सातों समंदर में अपार जल,
पृथ्वी पर कण और नभ
पर सूरज, चांद सितारे ना होते।

श्री गुरू


बिना ज्ञान जियूं कैसे,
अथाह ज्ञान हैं जग में।
बिन गुरु ज्ञान पाऊं कैसे,
दियो ज्ञान मोहे गुरु –
हरि गुण गाऊं मैं।
पाया ज्ञान गुरु से मैंने,
कहलाई मैं ज्ञानी।
ज्ञान मिला धर्म -कर्म करने का,
लक्ष्य बनाया अपने जीवन में –
कहलाई ज्ञानी मैं।
बंधी नही मैं प्राचीन परंपराओं से
दिखावा व झूठी संवेदनाओं से,
भ्रान्ति की डोरी से,
निरंकुश मानसिकता से,
एवं सामाजिक रूढ़िवादिता से।
हैं संस्कार मुझ में शालिनता के,
अतः मैं ज्ञानी हूं।
जो ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं,
मैं वो ज्ञानी हूं,बंधी नही मैं –
किन्हीं भ्रामक विचारों से।
दीन दुखियों के कष्टों-पीड़ाओं
का सहज और प्रेम से,
सेवा करती हूं।
उनके दिलों में बसने की –
तमन्ना रहती हैं मेरे मन में।
असहाय लोगों को सेवा देती हूं,
मैं अपने दिल व दिमाग में;
कभी अंहकार आने नही देती-
क्योंकि मैं ज्ञानी हूं।
ग्रंथो के संग्रहालयों की,
खुशबू रिझाती है मुझे।
ज्ञान का भंडार ढूंढती हूं उनमें
क्योंकि मैं ज्ञानी हूं।
ध्यान व परिश्रम से ज्ञान,
पाया है मैंने उसी ज्ञान से;
सम्पूर्ण जीवन बिताया मैंने।
मैं ज्ञानी हूं यह समझ अतिशय,
ज्ञात है मुझे,
बिना संसाधन के ही साधक
हो जाती हूं मैं।
राह असम्भव या दुर्गम हो,
उसे आसान बना लेती हूं मैं;
क्योंकि मैं मैं अज्ञानी नही,
ज्ञानी‌ हूं मैं।

चाचा नेहरू

फूल गुलाब खिलेगा बागों में जब जब,
जिन्दा रहेगा चाचा नेहरू नाम तुम्हारा।
जब तक है धरती पर चंदा सूर्य का उजियारा,
अमर रहेगा तब तक नाम तुम्हारा।
चाचा नेहरू तुम्हें सलाम,
अमन, शांति का जग को दिया – पैगाम।
जग को जंग से बचाया,
बच्चों का दुलार से साथ निभाया।
जन्मदिन बच्चों के नाम‌ किया,
चाचा नेहरू तुम्हें सलाम।
प्रगति को दिया तुमने इनाम,
चाचा नेहरू तुम्हें करते सलाम।

परिवर्तन

समय का चक्र घूमता रहता है,
तीव्र गति से निरंतर।
पीछे छूटे पदचिन्हों को,
आकुलता होती है मन को।
निकल गया एक बार जो समय,
कभी लौटकर नही आता।
परिवर्तन सार्वभौमिक है,
पल पल क्षण क्षण समय चक्र –
बदलता रहता है।
निकल गया जो एक बार समय
लौटकर कभी वह कभी नही आता।
करके आवाजें सभी अनसुनी,
दूर कहीं खो जाता है।
चलता रहता है समय चक्र,
करता रहता है जड़ चेतन में -परिवर्तन।
ज्यों नदियों का जल ठहरता नही एक जगह,
वैसे ही समय नही ठहरता एक सा जीवन में।
समय है परिवर्तनशील,
जैसे आयु बढ़ती है क्षण क्षण।
जीवन में खुशियों का होता है आलम,
कभी कभी दुखों का होता -है झमेला।
कभी अकेला जीता जीवन में,
कभी होता है लोगों का मेला।
जगत है एक सफर हम उसके हमराही,
लगी रहती है इंसानो की आवा- जाही।
बनते हैं सम्बन्ध नये नये,
छूट जाते सम्बन्ध कभी पुराने
कभी नयों में परिवर्तित हो हो जातें हैं।
परिवर्तन समय कभी ऐसा भी आता है,
छूट जाते हैं जन्म जन्म के – नाते।
बचपन से यौवन और यौवन से बुढ़ापा आता है,
मानव जीवन व प्रकृति में
आजीवन परिवर्तन का – नाता है।
दृश्यमान सभी हैं इक दिन – सभी को जाते हैं,
शाश्वत सत्य तो यही है समझे इसे सभी,
जग तो परिवर्तनशील है मिल जुलकर रहें‌ सभी।

चंद्रयान 3

इसरो का शुक्रिया,
पहुंचाया हमें चांद पर।
चंद्रयान 3 ने यह सम्भव कराया,
ऊंचा कर शीश हम जगत में –
कर रहे हैं स्वाभिमान से।
अंतरिक्ष में गूंज उठा है आज,
विजयी गान चंद्रयान के –
सम्मान में।
हम भी गायेंगे जन गण मन,
इसके अप्रतिम सम्मान में।
चंद्र भी रंग जाएगा तिरंगे –
के रंग में,
राष्ट्र ध्वज का स्वरूप लिए।
शीश ऊंचा किये हम देशवासी
खड़े हैं हम स्वाभिमान से।
हृदय हर्षित हुआ असीम,
चांद अब हमारा हुआ।
पास उसके जाकर अब देखेंगे-
घूर कर,
अब नही कहेंगे हम –
चंदा मामा दूर के।
कहेंगे मामा अब रहेंगे हम,
तेरे स्थल पर अपना घर –
बनाकर।
हमारे देश के वैज्ञानिकों
आप सभी हो गौरव हो –
हमारे राष्ट्र के।
शीश ऊंचा कर हम सब ,
खड़े हैं आज स्वाभिमान से।
जय हिन्द जय भारत
श्रीमती उमेश नाग

श्रीमती उमेश नाग

जयपुर, राजस्थान

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