सुनो तो | Suno to
सुनो तो
आज आ रही है हिचकियां सुबह से न जाने क्यों,
कल से ही दोनों नयन फड़क रहे हैं न जाने क्यों।
दोनों नयन फड़कता है समझ में नहीं आता मेरे,
मन मेरा कह रहा है वह आएगी न जाने क्यों।।
दब गई है चिट्टियां मोबाइल के इस दौर में,
प्यार भी तो घट गया मोबाइल के इस दौर में।
हाय हेलो करके आजकल सब निकल जाते हैं,
प्रणाम कहां रह गया मोबाइल के इस दौर में।।
ख्वाब सजाना भी पत्थर सा रह गया जमाने में,
खुद को मिटा देते हैं लोग, लोगों को दिखाने में।
इधर-उधर की बातें अब हर कोई करने लगा है,
खुद समझे नहीं और दूसरों के लगे हैं समझने में।।
कुछ भी मसला है बचा अब जिंदगी के बाद का,
भूल बैठा है शायद ओ मेरी पहली मुलाकात का।
नजरों से देखता है और मन में ढूंढता है मुझे वो भी,
भूल गया वो मुझे शिकवा गिला है किस बात का।।
तन्हाइयों के इस दौर में खुशियां पाना मुश्किल है,
वादा नहीं ताउम्र तेरे से साथ निभाना मुश्किल है।
हमने चाहा तो है उसे अपने ख्वाबों से भी ज्यादा,
आजकल सच बोल कर खुशियां पाना मुश्किल है।।
प्रभात सनातनी “राज” गोंडवी
गोंडा,उत्तर प्रदेश
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