
नाम नही
( Naam Nahi )
संघर्षो के रूग्ण धरातल, पे अब उनका नाम नही।
जाने कितने कटे मरे पर, कही भी उनका नाम नही।
ये आजादी चरखे के, चलने से हमको नही मिली,
लाखों ने कुर्बानी दी पर, कही भी उनका नाम नही।
बूंद बूंद मिलती है तब ये, सागर विस्तृत बनता है।
ना जाने कितनी नदियों के,जलधारा को समता है।
ऐसी ही कितनी कुर्बानी, दे दी भारत के लालों ने ,
सच्चे मन से उनको यारों, एक नमन तो बनता है।
राजनीति की परिचर्चा में, उन गलियों का नाम नही
जिसपर चल कर भारत उभरा,माँ बहनो का नाम नही
गाँधी नेहरु तक ही रह गयी,आजादी की पूर्ण शिखा
क्रांति लिखी हुंकार भरी उन,समवीरों का नाम नही
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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