उनको मुहब्बतों में ख़ुदा कर चुके हैं हम
उनको मुहब्बतों में ख़ुदा कर चुके हैं हम
उनको मुहब्बतों में ख़ुदा कर चुके हैं हम
अब अपनी मंज़िलों का पता कर चुके हैं हम
इक बेवफ़ा को अपना ख़ुदा कर चुके हैं हम
सब अपनी मंज़िलों को खफ़ा कर चुके हैं हम
अपना ये दिल वतन पे फ़ना कर दिया है अब
और जाँ लुटा के फ़र्ज़ अदा कर चुके हैं हम
जो ज़ख़्म आपने दिए उसके हैं अब भी घाव
दुश्मन से दिल लगा के ख़ता कर चुके हैं हम
उल्फ़त में सारी रस्म-ए-वफ़ा हम निभा लिए
इस इश्क़ का भी देख नशा कर चुके हैं हम
दीदार हुस्न का मिला अब तक हमें कहाँ
हर ख़्वाब क़ैद से तो रिहा कर चुके हैं हम
नफ़रत की गर्द अब तेरे चेहरे पे दिख पड़ी
अब ख़ूँ बहा के क़र्ज़ अदा कर चुके हैं
करते दुआ सलाम न हमसे वो आजकल
दामन हुआ है चाक गिला कर चुके हैं हम
बेमौत मरते देखा है मुफ़लिस को तो यहाँ
मीना जला के लाश जुदा कर चुके हैं हम
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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