निकल गया | Nikal Gaya
निकल गया
ऐसे वो आज दिल के नगर से निकल गया।
जैसे परिन्द कोई शजर से निकल गया।
किस रूप में वो आया था कुछ तो पता चले।
बच कर वो कैसे मेरी नज़र से निकल गया।
क्यों कर न नफ़़रतों का हो बाज़ार गर्म आज।
जज़्बा-ए-इ़श्क़,क़ल्बे-बशर से निकल गया।
उस दिन ही मेरे दिल के महक जाएंगे गुलाब।
जिस दिन वो मुस्कुरा के इधर से निकल गया।
सिखलाएं हैं उसी ने हुनर उस को दौड़ के।
आगे पिसर यूं आज पिदर से निकल गया।
हरगिज़ न मिल सकेगा ठिकाना उसे कहीं।
जिस दिन वो मेरे ज़ह्नो-जिगर से निकल गया।
दिल को मिरे ह़दफ़ पे रखा छोड़ कर फ़राज़।
तीर-ए-निगाहे-नाज़ किधर से निकल गया।
जिसको सलाम आ गया यमदूत का फ़राज़।
वो शख़्स़़ ज़िन्दगी के सफ़र से निकल गया।
पीपलसानवी
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