मेरी परवरिश का असर देखते हैं
मेरी परवरिश का असर देखते हैं
मेरी परवरिश का असर देखते हैं
वो घर को मेरे इस कदर देखते हैं
किताबों में जिनका असर देखते हैं
कभी भी नहीं उनका घर देखते हैं
पलट वार हमने किया ही कहाँ कब
अभी तक तो उनका हुनर देखते हैं
मिलेगी न हमको यहां मौत ऐसे
चलो साँस को बेचकर देखते हैं
करोगे कभी तो इशारा हमें तुम
तुम्हारी अभी तक नज़र देखते हैं
न भायी जहाँ में कोई चीज हमको
मगर फिर भी तेरा नगर देखते हैं
प्रखर भी तो गुरुबत का मारा हुआ है
उठा के नज़र सब ज़बर देखते हैं
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )
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