प्यारी माँ | Pyari Maa Kavita
प्यारी माँ
( Pyari Maa )
ये जो संचरित ब्यवहरित सृष्टि सारी है।
हे !मां सब तेरे चरणों की पुजारी है।।
कहां भटकता है ब्रत धाम नाम तीर्थों में,
मां की ममता ही तो हर तीर्थों पे भारी है।।
दो रोटी और खा ले लाल मेरे खातिर,
भूखी रहकर भी कईबार मां पुकारी है।।
अश्रु दामन में छिपाना और हंस देना,
बस एक मां है जिसमें ये कलाकारी है।।
शीत की रातें वो गीले बिस्तर ठिठुरन,
मुझे सूखे में कर मां शीत में गुजारी है।।
सर्दी हमें न लगे हफ्तों न नहायी मां
मेरे बारे में उसे बहुत जानकारी है।।
मेरा सूरज है सितारा है दीप है घर का,
हमारी इस तरह मां ने नजर उतारी है।।
वृद्धाश्रम देखकर आंखों ने गिराये मोती,
शेष ये कैसी सेवा कैसी वफादारी है।।
कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-नक्कूपुर, वि०खं०-छानबे, जनपद
मीरजापुर ( उत्तर प्रदेश )
यह भी पढ़ें : –