समझें गर जो दोस्ती दुश्मनी नहीं होती
समझें गर जो दोस्ती दुश्मनी नहीं होती
( Samajhen gar jo dosti dushmani nahi hoti )
समझें गर जो दोस्ती दुश्मनी नहीं होती!
मुहब्बत के ही बिना जिंदगी नहीं होती
करे चुगली हर घड़ी जो सदा आपकी ही
उसको जीवन में कभी फ़िर ख़ुशी नहीं होती
ख़िलाफ़ वो गर न होता अपना जो मुझसे
कभी उसी से फ़िर ये दुश्मनी नहीं होती
भुला देता जो ख़ुदा हाँ उसे दिल से मेरे
भुलाने में उसको फ़िर मयकशी नहीं होती
नहीं जाता तोड़कर दिल भरा उल्फ़त से वो
निगाहों में आज मेरी नमी नहीं होती
कि नफ़रतों से निहारा न होता अपनों ने
मुहब्बत की जिंदगी में कमी नहीं होती
नहीं होती जिंदगी से जुदा ख़ुशी मेरे
लगी नजर गर जो मुझको बुरी नहीं होती
नहीं जी पाता कभी भी अकेला आज़म
भरी जो ये जीस्त में शाइरी नहीं होती
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
यह भी पढ़ें : –