उनकी समझ में थे बहुत से | Ghazal
उनकी समझ में थे बहुत से
( Unki samajh mein the bahut se )
उनकी समझ में थे बहुत से दोस्त और यार
अब गिन रहे कितने बचे हैं और गमगुसार !!
कासिद ने खत के साथ ही मजमून भी दिया
जैसे कि म्यान से अलग से दे कोई कटार !!
उस तरफ की दूकानों पर नक्शे अजीब थे
लोहे के भाव ताव करते दिख रहे सुनार !!
ऐसा फकीर जिस पे तो कासा भी नहीं था
उस पर फिदा कई अमीर होते थे निसार !!
नफरत, हदस की, कत्ल की तालीमें हर जगह
मासूमों की बाकी किताबें सब थीं दरकिनार !!
ऊगे थे हरेक खेत में बारूद बम बन्दूक
था दहशतोवहशत का वहा चलता कारोबार !!
चलती थीं दावतें जहा थे पहरे वहा पर
बाहर गरीब भूखे सिसकते थे जार जार !!
ईदी पहुंच रही थी सब हुक्काम को जहां
तकरीरें थी बताने को मजहब के सारे सार !!
तकरीर कर रहा था जो भी खूब शख्स था
बुर्के बहुत से जानते थे उसको अपना यार !!
आयत जबा पे पर नजर बुरकों पे जमी थी
होठों से चूती दिख रही थी जैसे उसके लार !!
कहते फरिश्ते उछला अगर भीड़ पर कंकड़
जिसके भी सर पड़ा वो यकीनन है नाहजार !!
मजबूर खुदा देख रहा बन्दों से किस तरह
होता हुआ इस्लाम मुसलमा से तार तार !!
देगा नहीं तस्कीन रब उन नापाक को कभी
देखा उन्हें “आकाश” ने रोता ही जार जार !!
कवि : मनोहर चौबे “आकाश”
19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001
( मध्य प्रदेश )