मुहब्बत है यह

आदत नहीं है मेरे दोस्तों | Ghazal aadat nahi hai

आदत नहीं है मेरे दोस्तों, मुहब्बत है यह

(  Aadat nahi hai mere dosto muhabbat hai yah )

 

एक अनोखा रिश्ता शब् से बदलती कहाँ है

पत्थर है तो दरिया में से उभरती कहाँ है

 

आदत नहीं है मेरे दोस्तों, मुहब्बत है यह

मेरे चाहने भर से  यह छूटती कहाँ है

 

जान भला जान से बिछड़ता है क्या

फिर इबादत रूह से बिछड़ती कहाँ है

 

में बे-इन्तिहाँ दर्द चाहता हूँ अपने सीने में

एक मेरे रूठने से दुनिया उखड़ती कहाँ है

 

दर्द की बे-मिसाल दुनिया में, खुश हूँ में

यह कहते हुए भी मुझे खुसी मिलती कहाँ है

 

‘अनंत’ बे-शक जलता है हर इंसान से

जो खुश है, खुसी मुझे मगर जमती कहाँ है

 

शायर: स्वामी ध्यान अनंता

 

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