आँसू | Aansoo
आँसू !
( Aansoo )
हजारों रंग के होते हैं आँसू,
जल्दी दफन कहाँ होते हैं आँसू।
जंग तो हिला दी है सारे जहां को,
खाते हैं गम औ बहाते हैं आँसू।
ये रोने की कोई बीमारी नहीं,
पलकों को तोड़कर बहते हैं आँसू।
आँख का खजाना खत्म हो रहा,
रोती जमीं है निकलते हैं आँसू।
पलते थे मोती के जैसे ये आँसू,
अब तो नजर में चुभते हैं आँसू।
बादल जो होता बरस गया होता,
दुपट्टे में कहाँ अब टिकते हैं आँसू।
मंजर है ऐसा कि कहते नहीं बनता,
मलवे के अंदर छलकते हैं आँसू।
आँसू के सहारे कौन कितना जिए,
रॉकेटों से अब थर्राते हैं आँसू।
सुलगती चितायें रुके कैसे आँसू,
रोज बमों से वो उबलते हैं आँसू।
घाव इतने गहरे हैं, बयाँ कैसे करूँ,
झरने के जैसे बहते हैं आँसू।
पलटता है पन्ना जब भी वक़्त का,
पकड़कर किताबों को रोते हैं आँसू।
गिरते थे पहले ये रिश्तों की महक में,
कौन किसका पोंछे, तरसते हैं आँसू।
आँसुओं का दर्द कल समझेगा जमाना,
भले जंग न समझे क्यों रोते हैं आँसू।
जिन गलियों में बजती थीं शहनाइयाँ,
मातम में आज वहाँ बहते हैं आँसू।
श्मशान में अब बदल गईं फिजाएँ,
हवाओं की आँखों से झरते हैं आँसू।
सागर के सीने में दफ़न हुई साँसें,
चिपक कर यूएनओ से रोते हैं आँसू।
जंग को बनाया मानव खिलौना,
गगन की रुह से भी बहते हैं आँसू।
बेबस हथियारों की आत्मा को समझो,
उसकी भी आँख से छलकते हैं आँसू।
लिबासों के जैसा जो बदलता है चेहरा,
नहीं उसकी आँखों में छाते हैं आँसू।
आसमानों की परियों ने मुँह फेर लिया,
कब्र की आँखों से अब बहते हैं आँसू।
लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक )