आओ रोएँ

आओ रोएँ



जिसको खोया उसे याद कर बिलखें कलपें नयन भिगोएँ
आओ रोएँ

जो न खो गए उनको भूलें
खुशी दफ़्न कर, मातम वर लें
नंदन वन की जमीं बेचकर
झट मसान में बसने घर लें
सुख-सपनों में आग लगाकर
दुख-दर्दों के बीजे बोएँ
आओ रोएँ

पक्ष-विपक्ष नयन बन जाएँ
भूले से मत हाथ बँटाएँ
साथ न चलकर टाँग अड़ाएँ
फूटी आँख न साथी भाएँ
नहीं चैन से सोने देंगे
और न खुदी चैन से सोएँ
आओ रोएँ

लिख नवगीत करेंगे क्रंदन
उपन्यास से हो सुख-भंजन
व्यंग्य-लघुकथा बढ़ा-चढ़ाकर
करें विसंगतियों का वर्णन
भाषण-खबर निराशा फैला
कलियों को सौ शूल चुभोएँ
आओ रोएँ

खुशियों को दे दें तलाक हम
करें हौसला हर हलाक हम
मंदिर मस्जिद गिरिजा में रो
कर दें प्रभु को भी अवाक् हम
संसद विधायिका पंचायत
सबके शव काँधे पर ढोएँ
आओ रोएँ

निज त्रुटि छिपा, और की देखें
सद्गुण तज दुर्गुण ही लेखें
एक दूसरे के चेहरे पर
कालिख मलें, गंदगी फेंकें
कैसी बेढब जीवन शैली
सोचें दाग लगे जो धोएँ
काश न रोएँ

संजीव सलिल

यह भी पढ़ें:-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *