आतंक | Aatank
आतंक
( Aatank )
सुंदर घर थे
घर के अंदर
नन्हे बच्चे
रह गए रात के
अंधेरे में
राख के ढेर बस
वह नन्ही कोप्ले
खिल भी ना पाई
मुट्ठी पूरी खुल भी
ना पाई
सिसकियों में दब
गई मुस्कुराहट
रह गई गाजा मे
सिर्फ राख
और विनाश
त्रासदी का मंजर
घर में चहकती
आवाजे अब नहीं है
यह लाशें पूछना
चाहती है
कसूर तो बता दो
दुनिया को पाठ
पढ़ाने वालो
बम और बारूदो
पर रहने वालो
हासिल क्या
कर लिया
न यह जमीन
तेरी है न मेरी है
काश की
इसी ऊर्जा को
लगा दिया होता
नदी, पर्वत, पर्यावरण
के संगठन में
उन हजारों लाखों
की भी दुआएं
मिल जाती
शायद तालियां भी
बज जाती
खिले चेहरे को
देख पाते
तुम भी इसका हिस्सा
हो जान पाते
लाखों को नहीं
अरबो को मिटा दिया
पर्यावरण जो तुमने
प्रदूषित कर दिया
तुम कब समझोगे
दुष्परिणामों को
बमबारी करके
तापमान और
बढ़ा दिया
काश कि इन रूपयो से
मदद की होती
किसी बिन मां बाप
के बच्चे का
सहारा बने होते
पर धरोहर में
क्या दे रहे हो
जो नन्हे मुन्ने की
जान ले रहे हो
कुछ कर जाओ
ऐसा कि जमाना
याद रखें
तबाही आबाद नहीं करती
बर्बाद करती है
नस्लो को
जलाया होता तुमने
भी चिराग
अमन और शांति का
सुकून तेरे हिस्से में
भी आया होता
डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )
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