सुमन सिंह ‘याशी’

आजमाने लगे हैं

( Aazamane Lage Hain )

जिन्हे दोस्त अब तक खजाने लगें हैं ।
वही दोस्ती आजमाने लगे हैं ।।

हरिक झूठ जिनकी मुझे है अकीदत।
मिरे सच उन्हे बस बहाने लगे हैं ।।

नही मोल गम आसुओं की,तभी तो ।
बिना वज़्ह हम मुस्कुराने लगे है ।।

शजर काटता वो बड़ी जालिमी से।
जिसे सींचने में जमाने लगे है ।।

महक तर चमन दफ़्न कर आशियां वो।
गुल-ए-अब्रकों से सजाने लगे हैं ।।

मिलावट भरी भीड़ में देख गाहे ।
कदम खालिस अब डगमगाने लगें हैं।।

सुना अब दुआएं असर कर रही है।
जमीं पे फलक रोज आने लगे हैं ।।

जुदा नज़्र से जब नज़ारा किया तो
वही झोपड़ी आशियाने लगे हैं ।।

सभी याद जो अश्क से थे बरसते ।
उन्हे अब्र-ए-दिल से मिटाने लगे हैं ।।

सुमन सिंह ‘याशी’

वास्को डा गामा,  ( गोवा )

शब्द
अकीदत.. श्रद्धा, पूजा
जालिमी.. निर्दयता
गुल-ए-अब्रकों.. नकली फूल,artificial flowers
ख़ालिस.. सादगी
गाहे.. कभी कभी
अब्र-ए-दिल.. दिल रूपी बादल
शजर.. tree 🌴
@everyone

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