अब की बरसात | Ab ki Barsaat
अब की …. बरसात
( Ab ki …. Barsaat )
सुना शहर तेरे में जम के कुछ यूं बरसात हुई
मेरे आने से तेरे दिल की ज़मीं क्यों सहरा ना हुई
जलन कुछ इस तरह की ले आया था सीने में मैं
पत्थर मोम से पिघले मगर क्यों चश्म ए नम ना हुई
अब के सावन बरसा कि यूं बरसा कि हर तरफ पानी हुआ
रेत भरी थी जो दिल में तेरे, बस वही क्यों गीली ना हुई
बदली थी नीयत जो तेरी कि जलजला और सैलाब आए
चार रोज से बरस रहा, मेरे कच्चे मकां पर क्यों बरसात न हुई
कुछ तो अलग है हवा इधर की तेरे उस शहर से
दिल जो घुटता था वहां , वैसी उमस क्यों फिर इस बार ना हुई
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )