नहीं ग़म में कभी शामिल रहा है
( Nahin gam mein kabhi shamil raha hai )
नहीं ग़म में कभी शामिल रहा है ?
ख़ुशी का वो मेरी क़ातिल रहा है
कभी भी पेश उल्फ़त से न आया
हमेशा यूं बड़ा जाहिल रहा है
ख़ुशी का हो भला अहसास कैसे
ग़मों में चूर यूं बेदिल रहा है
मिला है कब ख़ुशी के साथ मुझसे
मुझे वो बेदिली से मिल रहा है
लगी ग़म की यहाँ ऐसी बहारें
ख़ुशी का गुल न कोई खिल रहा है
करे वो बात “आज़म” इस तरह से
भरा वो जख़्म जैसे छिल रहा है