Suneet Sood Grover Poetry

सुना है | Suneet Sood Grover Poetry

सुना है

( Suna hai )

 

कभी कभी

खंडहर भी

बोल उठते हैं

 

वीराने भी

खुद ब खुद

सज जाते हैं

 

झींगुरों की

ताल पर

बेताल भी

नाच उठतें हैं

 

सहरा में भी

आब’शार

मिल जाते हैं

 

कभी तो

मुर्दा जिस्मों में

बसती

रूह भी

कराह उठेगी

 

सोई ज़मीर

उस आह से

शायद

होश में

आयेगी

 

इंसान की

हैवानियत भी

शायद

कभी तो

अपना

मुँह छुपायेगी

 

दरिंदा हुये

बश्र

कभी तो

 

इबलीस के नहीं

आदम की

जात

फिर से

बन पायेगी

?

Suneet Sood Grover

लेखिका :- Suneet Sood Grover

अमृतसर ( पंजाब )

 

वीराने   = निर्जन स्थान

सहरा   = रेगिस्तान, वीराना, वो जगह जहां पानी घास और दरख़्त वग़ैरा कुछ भी ना हो

आबशार = झरना , जल-प्रपात

रूह    = आत्मा

ज़मीर   = अंतरात्मा

हैवानियत = पशुओं का सा क्रूर आचरण

इबलीस = शैतान

आदम = मानव , मूल पुरुष

 

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