अदा के नाम पे | Ada ke Naam Pe
अदा के नाम पे
( Ada ke Naam Pe )
अदा के नाम पे ये बेहिसाब बेचते हैं
कि हुस्न वाले खुलेआम ख़्वाब बेचते हैं
जिन्हें शऊर नही है बू ओर रंगत का
वो काग़ज़ों के यहाँ पर गुलाब बेचते हैं
अमीर लोगो की फितना परस्ती तो देखो
जला के घर वो ग़रीबों का आब बेचते हैं
मुहब्बतों के जो हामी हैं इस लिए लोगो
मुहब्बतों की मुक़द्दस क़िताब बेचते हैं
रियासतें न रहीं शान अब न पहले सी
कि शर्म सारी ही बिगड़े नवाब बेचते हैं
बड़े हैं झूठे फ़रेबी न एतबार करो
ज़मी तो बेच चुके माहताब बेचते है
नज़र लगे न कहीं शायरी को ऐ मीना
कि शेर सारे ही वो लाजवाब बेचते हैं
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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