अधूरी | Adhuri
अधूरी
( Adhuri )
अकसर अधूरी रह जाती हैं बातें
अब बाबुल की याद में हि कटती है रातें
वक्त निकाल कर
बात तो कर लेते हैं
हाल ए दिल सुना देते हैं
मगर कुछ अधूरी कहानी रह जाती है
कुछ बाते सुनानी रह जाती है
जिम्मेदारियों में आंखे डूब जाती हैं
बाबुल की यादें भी बहुत सताती हैं
ऐ जिंदगी शिकायत नही तुझसे
खो दिया है बाबुल का आंगन खुदसे
फिक्र तो आज भी होती है
भाई कैसा होंगा
मां ने किससे अपना हाल बांटा होंगा
जिम्मेदारी का रिश्ता भी
यादों में खोने नही देता
रहती है याद सबकी सोने नहीं देता
हस्ता खेलता बाबुल का आंगन रहे
बस यही इल्तेजा खुदासे करती हु
नौशाबा जिलानी सुरिया
महाराष्ट्र, सिंदी (रे)