अद्वैत दर्शन की गाथा

अद्वैत दर्शन की गाथा

अद्वैत दर्शन की गाथा

ब्रह्म से हम, ब्रह्म में समाहित,
यही सत्य है, जीवन का उद्देश्य।
अहं ब्रह्मास्मि, आत्मा का स्वर,
अद्वैत में बसा, जीवन का मर्म।

न कोई भेद है, न कोई दूरी,
सब एक हैं, यही सत्य की पूरी।
ब्रह्म साकार, ब्रह्म निराकार,
एक ही शक्ति, आत्मा का दुआर।

जीवन की धारा, एक ही प्रवाह,
आत्मा और ब्रह्म, दोनों का एक रूपाह।
न जन्म है, न मृत्यु का कोई सवाल,
ब्रह्म है अस्तित्व, यही जीवन का हाल।

सच्चे सुख की खोज, ब्रह्म में छुपी,
आत्मा से ही, हर बंधन से मुक्ति।
परमात्मा साकार या निराकार,
सब में बसी है, एक ही साकार।

वेदों में बसी है, सत्य की वाणी,
ब्रह्म का अस्तित्व, जगत की निशानी।
आत्मा और शरीर, न कोई भेद,
यही अद्वैत का संदेश है सत्य का फेर।

जीवन का सार है, अद्वैत का ज्ञान,
सब कुछ ब्रह्म है, यह परम विधान।
न मन का मोह, न देह का ध्यान,
सत्य में बसी है, आत्मा की शांति का मान।

अहंकार का मिटना, यही जीवन की राह,
ब्रह्म के साथ एक हो, यही है मोक्ष की चाह।
वह ब्रह्म अज्ञेय, वह ब्रह्म ज्ञेय,
हर रूप में वही, यही अद्वैत का प्रकट दृश्य।

ब्रह्म का अनुभव, भीतर ही बसता,
वही जीवन का उद्देश्य, वही ब्रह्म का गीत गाता।
सब रूपों में एकता, यही जीवन का सत्य,
ब्रह्म की छवि में छुपा है, हर अस्तित्व का प्रकट।

कर्म से न भागो, आत्मा में डूबो,
ब्रह्म का ध्यान रखो, वही सच्चा जीवन सबको।
न कोई स्थान, न कोई काल,
ब्रह्म में समाहित है, सभी का हाल।

ब्रह्म से जड़, ब्रह्म से चेतन,
सब कुछ एक है, यही अद्वैत का मंत्र।
जीवन में हर अनुभव, आत्मा से जुड़ा,
अद्वैत के मार्ग पर, शांति का रूप रचा।

न कोई देवता, न कोई शक्ति,
ब्रह्म में सब एक है, यही सच्ची शक्ति।
जीवन में हर धड़कन, ब्रह्म का अहसास,
यही सत्य है, यही जीवन का विश्वास।

ब्रह्म का ध्यान में, साकार की शांति,
यही सत्य है, यही आत्मा की बाती।
आत्मा की गहराई में बसी है, ब्रह्म की कांति,
यही जीवन का सत्य, यही मोक्ष की शांति।

आत्मा ब्रह्म है, ब्रह्म आत्मा है,
हर रूप में एकता, यही सत्य का विस्तार है।
अंतःकरण से देखो, ब्रह्म का प्रकाश,
यही जीवन का लक्ष्य, यही आत्मा का रास।

ब्रह्म के ध्यान में, साकार की शांति,
यही सत्य है, यही आत्मा की बाती।
आत्मा की गहराई में बसी है, ब्रह्म की कांति,
यही जीवन का सत्य, यही मोक्ष की शांति।

न कोई द्वैत, न कोई भेदभाव,
ब्रह्म में सब समाहित, यही है अद्वैत का भाव।
कर्म से मुक्ति, केवल ब्रह्म में है,
यही सत्य है, यही मोक्ष की राह।

जीवन का हर अनुभव, ब्रह्म से जुड़ा,
अद्वैत का सत्य, जो जीवन में हर जगह फूला।
ब्रह्म से ही अस्तित्व है, ब्रह्म में ही जीवन की राह,
यही अद्वैत का सत्य है, यही जीवन का उद्देश्य का ज्ञान।

अवनीश कुमार गुप्ता ‘निर्द्वंद’
प्रयागराज

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