अजनबी

अजनबी | Kavita Ajnabi

अजनबी

( Ajnabi )

 

दौर कैसा आ गया,
दूरियां लेकर यहां,
अजनबी सी जिंदगी,
छूप रहे चेहरे यहां।

 

सबको भय सता रहा,
अजनबी बना रहा,
रिश्तो के दीवानों को,
क्या-क्या खेल दिखा रहा।

 

अपनेपन के भाव को,
जाने क्या हवा लगी,
अपनों से सब दूर हो,
बन गए हैं अजनबी।

 

कोई अंजाना शख्स,
सेवा करता है तभी,
लगे मसीहा सा अगर,
ना वो कोई अजनबी।

 

अजनबियों के शहर में,
कोई अपना मिल जाए,
लबों की मुस्कान लौटे,
दिल को खुशी मिल जाए।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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