कहते है जिसने जीवन में अनेकांतवाद को सही से अपना लिया उसने जीवन में सुखो की राह को खोल लिया। उत्कृष्ट चिन्तक और विचारक, दार्शनिक,लेखक, उच्च कोटि के ध्यान तपस्वी आदि अहिंसा व अनेकांतवाद के अथक पुजारी होते है तभी तो वे परम दार्शनिक महामनस्वी कहलाते है।

वैचारिक मतभेदों, उलझनों, झगड़ो आदि से बचने के लिए व शांति की स्थापना के लिए भगवान् महावीर के अनेकान्तवाद का सिद्धांत बहुत ही महत्वपूर्ण है। अनेकान्तवाद किसी भी वस्तु के विषय में उत्पन्न एकांतवादियों के विवादों को उसी प्रकार दूर करता है जिस प्रकार हाथी को लेकर उत्पन्न जन्मान्धों के विवादों को नेत्र वाला व्यक्ति दूर कर देता है।

इसे संसार जितना जल्दी व अधिक अपनाएगा, विश्व शांति उतनी ही जल्दी संभव है। जब एकांगी दृष्टिकोण विवाद और आग्रह से मुक्त होंगे, तभी भिन्नता से समन्वय के सूत्र परिलक्षित हो सकेंगे। जीवन का संपूर्ण विकास इससे संभव है।

अनेकांत के दर्पण मे ही सदा सत्य के दर्शन होते है। तप से निश्चित तेज निखरता, साक्षी स्वयं सूर्य का हर कण। नहीं विकल्प दूसरा कोई, उङने को आकाश चाहिए पर बंधन मिट जाते सारे,श्रद्धामय हो अगर समर्पण।

अनेकांतवाद हमे हमेशा हठधर्मी से दूर रखता है। मैं भी ठीक,आप भी ठीक इस सारगर्भित तथ्य से भरपूर होता है। मन में यदि यह गहरा अनेकांतवाद का सिद्धांत बैठ गया तो फिर कभी भी मतभेद, मनभेद की बात पनप ही नहीं सकती हैं इसीलिए तो यह सभी तरह से अनेकांतवाद स्नेह-प्रेम का मधुर सम्वाद हैं।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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