अनजाना सफ़र | Anjana Safar
अनजाना सफ़र
( Anjana Safar )
महानगर के होटल की पच्चीसवीं मंज़िल से
देख रही हूँ चलती हुई रेलगाड़ी को
जो सर्पाकार घुमावदार लम्बाई में
मानो अजगर सी रेंगती हो
रेलगाड़ी के डिब्बे
लगते हैं जैसे
अजगर के शरीर पर पड़ी धारियाँ
जिसने भी रेल का आविष्कार किया होगा
उसके हृदय में एक बार तो
विशाल अजगर के रेंगने का ख़्याल आया होगा
रेल का इंजन
अजगर के मुख सा दिखता है,
इंजन की दो खिड़कियाँ
अजगर की आँखों की तरह चमकती हैं।
रेलगाड़ी हमारी उम्र की तरह
तेज़ी से गुज़र रही है
और उसके डिब्बे
हमारे जीवन के दिनों की तरह
हमारी आँखों से ओझल होते जा रहे हैं
रेल की दिशा और मंज़िल निर्धारित है
मगर हमारा जीवन तो एक अनजाना सफ़र है
शून्य से अनन्त की ओर
लेकिन, रेल और अजगर में एक बड़ा अंतर है—
रेल हमें हमारी यात्रा की
संपूर्णता की ओर ले जाती है,
जबकि अजगर स्वयं में लपेट कर
छीन लेता है किसी की ज़िन्दगी
और समाप्त कर देता है साँसों की यात्रा
बड़ी देर से खिड़की के पास खड़ी
यही सोच रही हूँ
दूर जाती हुई
रेलगाड़ी को देख रही हूँ…..।
डॉ जसप्रीत कौर फ़लक
( लुधियाना )
लाजवाब सृजन!
हमारा जीवन अनजाना सफर रैल की तरह है रैल अजगर की तरह है, बहुत ही सुंदर अभिनंदन लेखिका को