
पतंग
( Patang )
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पतली सी डोर लिए
हवाओं से होड़ लिए
गगन में उड़ता फर फर
ऊपर नीचे करता सर सर।
बालमन युवामन को यह भाए
विशेषकर मकर संक्रांति जब आए।
यूं तो सालों भर बिकता है पतंग,
बच्चे उड़ाते होकर मलंग ।
लिए चलें पतंग सभी, मैदानों को जाएं,
या फिर किसी छत पर ही चढ़ जाएं।
मजे ले लेकर उड़ाएं पतंग,
लड़ाएं, काटें , कटाएं पतंग।
दूर नभ में जाए पतंग,
बच्चे बूढ़ों में लाए उमंग।
सभी करें मस्ती संग संग,
ये अपना पतंग .. ये अपना पतंग।
हवा में खूब लहराए पतंग,
फहराए, टकराए, बलखाए पतंग।
काटे या फिर कट जाए,
मज़ा बहुत ही आए।
कटे जिनकी वो शर्माएं,
काटने वाले उधम मचाएं।
ये पतंग निराला, देता संदेशा प्यारा
अगर ऊंचा उड़ना है तो-
पतली डोर नीचे हो जरूर,
ऊपर जब हवा करे मजबूर।
नीचे आने का मार्ग रखें जरूर।
नहीं तो फटकर नष्ट होना पड़ेगा कहे मंजूर।
बिना इस डोर के ऊंचा उड़ न पाओगे,
झट बिखर कर नष्ट ही हो जाओगे।
लेकिन आजकल इसके-
कुछ साइड इफेक्ट्स आने लगे हैं,
चायनीज धागे बाजारों में छाने लगे हैं।
मांझे वाले की अब नहीं होती पूछ,
कृत्रिम धागे खरीद कर बच्चे हो रहें खुश।
इन धागों से कटकर कई पक्षियों और
बच्चों के मरने की खबरें आ रही है,
शासन ने इन धागों पर प्रतिबंध लगा रखी है।
सोच समझकर सब करना धागे का चुनाव,
ऐसा पतंग उड़ाकर जीवों को क्षति न पहुंचाओ।
इसी में बुद्धिमानी है,
वरना पतंग उड़ाने की खुशी बेमानी है।
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लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।