Similar Posts
बचपन के दिन | kavita
बचपन के दिन ( Bachapan ke din ) पलकों पे अधरों को रख कर, थपकी देत सुलाय। नही रहे अब दिन बचपन के, अब मुझे नींद न आय। सपने जल गए भस्म बन गई, अब रोए ना मुस्काए, लौंटा दो कोई बचपन के दिय, अब ना पीड़ सहाय। किससे मन की बात कहे,…
विश्वासघात | Vishwasghaat kavita
विश्वासघात ( Vishwasghaat ) छल कपट विश्वासघात का दुनिया में है बोलबाला हंसों का दाना काग चुग रहे छीने मुंह का निवाला स्वार्थ सिद्ध करने वाले बोल मधुर से बोल रहे अपनापन अनमोल जता जहर हवा में घोल रहे दगाबाजी धोखाधड़ी वंचना देशद्रोह और गद्दारी विश्वासघात के रूप कई अपघात और भ्रष्टाचारी…
मां के आंगन की मिट्टी | Dr. Preeti Parmar Poetry
मां के आंगन की मिट्टी ( Maan ke aangan ki mitti ) दो पल के लिए मेरे मन उस रास्ते से गुजर जाऊं मां के आंगन की मिट्टी अपने आंचल में भर लाउ मां के आंचल की खुशबू अपनी सांसों में भर लाऊं आम के पेड़ और झूला धमाचौकड़ी का मंजर अपनी आंखों में…
गुरु | Guru par kavita in Hindi
गुरु ( Guru ) गुरु तुम दीपक मैं अंधकार , किए हैं मुझपे आप उपकार, पड़ा है मुझपर ज्ञान प्रकाश, बना है जीवन ये उपवास, करें नित मुझ पर बस उपकार , सजे मेरा जीवन घर द्वार, गुरु से मिले जो ज्ञान नूर, हो जाऊं मैं जहां में मशहूर गुरु…
झूले पड़ गए सावन के | Jhule pad gaye sawan ke
झूले पड़ गए सावन के ( Jhule pad gaye sawan ke ) आजा साजन आजा साजन झूले पड़ गये सावन के उमड़ घुमड़ बदरिया छाई बूंदे बरसे मोती बनके इठलाती बलखाती सी नदियां लहर लहर लहराये सुरभीत बाग बगीचे महके तन मन सारा हरसाये हरियाली से भरी वादियां फूल खिले मनभावन से…
मैं माटी का दीपक हूँ
मैं माटी का दीपक हूँ जन्म हो या हो मरणयुद्धभूमि में हो कोई आक्रमणसरण के अग्निकुण्ड का हो समर्पणया पवित्र गंगा मे हो अस्थियों का विसर्जनमैं जलाया जाता हूँमाटी का दीपक हूँ ….अंत में इसी रजकण मे मिल जाता हूँमैं माटी का दीपक हूँमाना की नहीं हैसूर्य किरणों सी आभा मुझमेचंद्र सी नहीं है प्रभाअसंख्य…