देख टूट रही है आशा,
छा रही मन में निराशा।
दशा व दिशा,
सुन उनके मन की व्यथा;
कहूं क्या मैं कथा?
देख सुन हैरान हूं,
परेशान हूं।
लकीरें चिंता की खिंच आई हैं,
लाकर काॅपी जो उसने दिखाई है।
माथा पकड़ लिया हूं,
स्नेह से जकड़ लिया हूं।
हिंदी की ऐसी दुर्दशा?
शुद्ध शुद्ध न लिख पा रहा,
अंदर से है रूला रहा।
हरेक शब्द में मात्रात्मक त्रुटि,
बिंदू कौमा विराम चिह्न भी है छुटी।
एक साल जो न ढ़ंग से हैं पढ़ पाए,
दुष्प्रभाव पड़ना ही है, था तय।
कहां से करूं शुरूआत?
नहीं कर पा रहा हूं ज्ञात।
लाॅकडाउन ने छीना भविष्य इनका,
बिखरा बंडल बनकर तिनका।
भविष्य कैसा अब होगा इनका?
कैसे करूं इन्हें पुनर्व्यवस्थित ?
तिनके को करूं कैसे एकत्रित?
हार नहीं मानूंगा, जोर लगा दूंगा,
लाने की पटरी पर भरपूर कोशिश करूंगा।
अभ्यास कराउंगा दिन रात,
शायद बन जाए बात।
संभल जाएं ये ,
भविष्य भी संवर जाए,
इन्हें और हिंदी को-
लगे न नजर या हाय?
महके देश की बगिया-
पूर्वत खिलखिलाए,
बच्चे फिर से शुद्ध शुद्ध हिंदी लिखना सीख जाएं।
ताक झांक न करनी पड़े उन्हें दाएं बाएं,
चलो हम सब मिलकर एक बार-
पुनः जोर लगाएं।