![Premagan प्रेम अगन](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2021/02/Premagan-696x435.jpg)
प्रेम अगन
( Prem Agan )
बचना होगा प्रेम अगन से, इसमे ज्वाला ज्यादा है।
सुप्त सा ये दिखता तो है पर,तपन बहुत ही ज्यादा है।
जो भी उलझा इस माया में, वो ना कभी बच पाया है,
या तो जल कर खाक हुआ या, दर्द फफोला पाया है।
कोई कुछ भी ना कहता इस दर्द मे बस रम जाता है।
खुद में खोया रहता है, खुद रोता खुद मुस्काता है।
प्रेम अगन की पीडा जिसको रति ने पहले झेला था,
भस्म हुए जब कामदेव तब, बिखर गया हर मेला था।
शकुन्तला सुन्दर सुकुमारी प्रेम अगन जिस पे था भारी।
राधा रम गयी नारायण में, तो मीरा हो गयी दीवानी।
अब कैसा ”हुंकार शेर” , जलने दो खुद को ज्वाला में,
प्रेम अगन की तपन मिटेगी, प्रेम या विष की प्याली में।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )