अन्तर्मन का दीया
अन्तर्मन का दीया
दीपावली के दीये तो
बुझ जाएँगे
एक रात के बाद
किन्तु अन्तर्मन का दीया
सदैव जलाए रखना
तांकि मिट सके
निराशाओं का तिमिर
चमकता रहे
आशाओं का शिविर
जगमगा उठे
यह दिवस ओ निशा
भावनाओं की हर दिशा
यदि हो सके तो
जलाना
किसी असहाय के
बुझे हुए दीये
रौशनी के लिए।
डॉ जसप्रीत कौर फ़लक
( लुधियाना )