अपनत्व दिखावा तो नहीं | Apnatva par kavita
अपनत्व दिखावा तो नहीं
( Apnatva dikhawa to nahi )
अपनापन अनमोल भाई कोई दिखावा तो नहीं।
अपनों से परिवार सुखी कोई छलावा तो नहीं।
अपनो की महफिल में महके खिलते चमन दिलों के।
दिखावे की दुनिया में मिलते कदम कदम पे धोखे।
घट घट प्रेम सरिताएं बहती पावन प्रेम की रसधार।
सुख आनंद उमड़ता जाए बरसता प्यार ही-प्यार।
कोई हंसता कोई गाता कोई मंद मंद मुस्काता है।
स्नेह सुधारस बरसे खुशियों का आलम छाता है।
दिल से दिल का रिश्ता जोड़े दिलों के तार जहां।
अपनत्व से खिल जाये सपनों का संसार यहां।
मीठे मीठे बोल मधुर जब दिल तक दस्तक दे जाते।
सच्चा प्रेम हिलोरे लेता खिले सबके चेहरे मुस्काते।
अपनत्व अपनों की खातिर दिलों में बहती रसधार।
मत समझो दिखावा प्यारे अपनत्व तो सच्चा प्यार।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )