अपनी आँखों में आसूँ खुशी के

अपनी आँखों में आसूँ खुशी के

अपनी आँखों में आसूँ खुशी के

अपनी आँखों में आसूँ खुशी के
स्वप्न सच हो गये ज़िन्दगी के

उनके आते ही आयीं बहारें
लौट आये हैं दिन आशिकी के

कुछ तो मजबूरियां होगीं उनकी
पास जाते न यूँ वो किसी के

बात क्या है जो तू डर रहा है
तूने देखे हैं दिन बेबसी के

जिन बहारों का मौसम नहीं था
फूल उनमें खिले हैं खुशी के

क्या करूँगा लगाकर गले मैं
दिन बचे कितने अब ज़िन्दगी के

भूल मत जाना उसको प्रखर तुम
कितने एहसान तुझ पे उसी के

Mahendra Singh Prakhar

महेन्द्र सिंह प्रखर 

( बाराबंकी )

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