कौन देता सहारा किसी को
कौन देता सहारा किसी को
कौन देता सहारा किसी को
लोग जीते हैं अपनी ख़ुशी को
रश्क करने लगे तुझ से दुनिया
इतना रंगीन कर ज़िन्दगी को
इक मुसाफ़िर ने दिल में उतर कर
दिल से बाहर किया है सभी को
मिन्नतें कर के तौबा भी कर ली
छोड़िए आप अब बरहमी को
झुक गये वक़्त के फ़ैसले पर
रोते कब तक किसी की कमी को
देके क़समें पिलाता था कोई
भूल पाया न उस मयकशी को
इतने आंसू बहाये हैं साग़र
रोक लो आके बहती नदी को
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
बरहमी – नाराज़गी
मयकशी – शराब पीना
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