नंदोत्सव छठोत्सव

विधा-गीत

 

ले लो ले लो बधाई श्रीकृष्ण जन्म की
दे दो दे दो बधाई श्री कृष्ण जन्म की ।
माँ यशोदा खुशी से समाती नही
दुनियाँ से तनिक भी लजाती नही
मुख बार बार चूमें अपने लल्ला की
ले लो ले तो बधाई श्रीकृष्ण जन्म की
घूम घूम कर नाच दिखाते कान्हा
अपनी पतली कमर मटकाते कान्हा
छवि सबको लुभाती रही कान्हा की ।
लेलो बधाई श्रीकृष्ण जन्म की ।
ढोल ताशे मृंदग बजाओ सभी
दे दे के ताल नचाओ सभी ‘ ।
चहूँ गूंजे मधुर स्वर शहनाई की ।
कृष्ण की बांकी झांकी निहारे सभी
लीलाओं को उसकी न जाने सभी
मंत्रमुग्ध देखे लीला लीलाधर की
देदो दे दो दिखाई श्रीकृष्ण जन्म की

 

 हिन्दी भाषा

विधा : पद्य कविता

आओ चलो दिखा दे हम
अपनी भाषा में जान है । ।
अपनी भाषा पुष्ट हुई तो
बढ़ता अपना मान है ।
भावो को विस्तार मिलता
अभिव्यक्ति को सार मिलता ।
रचनाओं का हार मिलता
अपनो सा व्यवहार मिलता ।
अपनी भाषा में ही देखो
सुर की चढ़ती तान है ।
त्रुटि नही व्याकरण की इसमें
न कोई संदेह है ।
सहज सरल मीठी होने से
सभी जनो को गेह है ।
संस्कृत भाषा जननी इसकी
किसी से न परहेज है ।
आने वाली हर भाषा को
रखती मन से सहेज है ।
हिन्दी भाषा में मिलकर
हर भाषा पाती मान है।
छल करते अपने ही बेटे
सेवा न निज मां की करते
दुर्बल हुई तो दुर्बलता का
दोष भी मां के सिर रखते ।
अपनाते दूजो की भाषा
आकर्षण में उसके बंधते
हिन्दी दिवस मना करके बस
पुत्र धर्म का पालन करते।
दिखलाते जग को फिर भी
हिन्दी का रखते ध्यान है ।
अपनी भाषा पुष्ट हुई तो
बढ़ता अपना मान है ।

 

आशा झा
दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )

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