अस्तित्व | Astitv
अस्तित्व
( Astitv )
समाज ही होने लगे जब संस्कार विहीन
तब सभ्यता की बातें रह जाती हैं कल्पना मात्र ही
सत्य दब जाता है झूठ के बोझ तले
अवरुद्ध हो जाते हैं सफलता के मार्ग
चल उठता है सिर्फ
दोषा रोपण का क्रम एक दूसरे के प्रति
मर जाती है भावनाएं आपसी
खत्म हो जाते हैं आदर, लिहाज, सम्मान सभी
स्वयं की व्यक्तिगत सोच और कर्म ही
रहते हैं हावी व्यक्तित्व पर
आदमी समझता ही नहीं किसी को
और नहीं खुद को समझा पता है किसी को
शांत झील की सतह के नीचे
मचा रहता है तांडव नृत्य
कोई किसी से संतुष्ट हो ही नहीं पता
आंतरिक भंवर जाल से उबरना नहीं होता
बीज से ही जन्म होता है वृक्ष और फल का
भूमि का उपजाऊ पन व्यर्थ है
यदि बीज ही नपुंसक हो तो
तब हरियाली का अस्तित्व भी बंजर ही होगा
( मुंबई )