अतिक्रांत छंद – विषममात्रिक
जय गणेश
जय गणेश गणपति दाता, तुम्हीं हो मेरे अपने,
कर जोड़े द्वारे ठाढ़ी, कर दों पूरे सपने l
हो प्रसन्न जग के स्वामी, फलित कर्मों में जलती ,
मैं पापी लम्पट लोभी, अगणित करती गलती l
अज्ञानी पर हूँ बालक, लगा चरणों से अपने ,
अंजानी राहें चल कर, लागे माला जपने l
प्रभु ज्ञानी अंतरयामी, प्रणामी तेरी गरिमा l
दे मुझको इतना गौरव, समझूँ सारी अणिमा l
मैं फिरती मारी मारी, तुझे करुणा कब करनी ,
तुम ठहरे जीवन स्वामी, बस हम को ही भरनी l
सुशीला जोशी
विद्योत्तमा, मुजफ्फरनगर उप्र